नवनियुक्त अध्यक्ष आदेश गुप्ता के सामने संगठन को मजबूत करने की है चुनौती
अंतिम प्रवक्ता, 02 जून, 2020। भाजपा ने किसी हाईप्रोफाइल नेता के बजाय संगठन के साथ वर्षो से जुड़े रहे जमीनी कार्यकर्ता आदेश गुप्ता को दिल्ली की कमान सौंपी है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से लेकर भारतीय जनता युवा मोर्चा और भाजपा में अलग-अलग जिम्मेदारी संभालने वाले गुप्ता के सामने अब दिल्ली में पार्टी को एकजुट करने की चुनौती है। उत्तरी दिल्ली नगर निगम के महापौर के तौर पर उनकी साफ सुथरी छवि का फायदा पार्टी लगभग दो वर्ष बाद होने वाले नगर निगम चुनाव में भुनाना चाहती है। पार्टी की उम्मीद पर खरा उतरने के लिए सबको साथ लेकर चलना होगा।
दिल्ली विधानसभा में मिली हार और प्रदेश के नेताओं की आपसी खींचतान से पार्टी नेतृत्व चितित है। नगर निगम चुनाव के लगभग दो साल शेष है। निगम पर कब्जा बरकरार रखने के लिए संगठन को मजबूत करना होगा। इसके साथ ही निगम के कामकाज की खामियां दूर करके पार्टी की छवि सुधारने की भी जरूरत है। दिल्ली में व्यापारी व वैश्य समाज को भाजपा का परंपरागत समर्थक माना जाता है, लेकिन पिछले कुछ वर्षो से इनके बीच पार्टी की पकड़ कमजोर हुई है। माना जा रहा है कि इन सियासी समीकरण को ध्यान में रखकर पार्टी नेतृत्व ने आदेश गुप्ता पर विश्वास जताया है। जमीनी स्तर पर काम करने की वजह से आम कार्यकर्ताओं की समस्या वह बेहतर समझ सकते हैं।
प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर प्रदेश के कई बड़े नेताओं व सांसदों की नजर थी। ऐसे में गुप्ता को इन सबको साथ लेकर चलना आसान नहीं होगा। हालांकि, इन्हें जानने वाले पार्टी के नेताओं का कहना है कि मिलनसार स्वभाव और गुटबाजी से दूर होने के कारण इन्हें ज्यादा दिक्कत नहीं होगी। वह महापौर की जिम्मेदारी निभा चुके हैं, इसलिए निगम के कामकाज को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं।
भाजपा नेताओं का कहना है कि नवनियुक्त अध्यक्ष के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी टीम बनाने की होगी। मंडल से लेकर प्रदेश तक योग्य व समर्पित नेताओं को आगे लाना होगा जिससे कि संगठन को मजबूत किया जा सके, इसलिए सबकी नजर इनकी टीम पर होगी।
आदेश गुप्ता पार्षद से दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनने वाले तीसरे नेता हैं। सबसे पहले पार्टी ने मई, 2010 में उस समय के पार्षद विजेंद्र गुप्ता को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी थी। उनके नेतृत्व में पार्टी वर्ष 2012 में निगम चुनाव जीतने में सफल रही थी। उसके बाद जुलाई, 2014 में सतीश उपाध्याय पार्षद रहते हुए प्रदेश अध्यक्ष बने। उनके नेतृत्व में पार्टी को विधानसभा चुनाव में हार मिली थी।
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