उच्चतम न्यायालय का राज्यों को निर्देशः प्रवासी कामगारों से घर जाने के लिये भाड़ा नहीं लिया जाये
अंतिम प्रवक्ता, 28 मई, 2020। कोविड-19 महामारी के कारण पलायन कर रहे प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा का स्वतः संज्ञान लिये गये मामले में उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया कि देश के विभिन्न हिस्सों से अपने गंतव्य जाने के इच्छुक श्रमिकों से रेल या बस का कोई किराया नहीं लिया जायेगा और उन्हें खाना और पानी उपलब्ध कराया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने विभिन्न स्थानों पर फंसे इन श्रमिकों के मामले में करीब ढाई घंटे की सुनवाई के बाद अंतरिम निर्देश दिये और कहा कि संबंधित राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश अपने यहां विभिन्न स्थानों पर फंसे कामगारों को भोजन उपलब्ध कराने के स्थान के बारे में उन्हें वहीं सूचित करेंगी जहां वह वे अपनी बारी के लिये ट्रेन या बस का इंतजार कर रहे हैं। न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के बाद अपने निर्देशों में कहा कि इन श्रमिकों की यात्रा जिस राज्य से शुरू होगी, वे अपने यहां के स्टेशन पर भोजन और पानी उपलब्ध करायेंगे और यात्रा के दौरान इन श्रमिकों को भोजन तथा पानी रेलवे मुहैया करायेगा। न्यायालय ने कहा कि बसों में यात्रा के दौरान भी इन कामगारों को खाना और पानी उपलब्ध कराना होगा। इस मामले में न्यायालय अब पांच जून को आगे विचार करेगा। पीठ ने सभी राज्यों को निर्देश दिया कि वे कामगारों के पंजीकरण की व्यवस्था देखें और यह सुनिश्चित करें कि ये कामगार अपने गंतव्य के लिये जल्द से जल्द ट्रेनों या बसों में सवार हों। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस संबंध में पूरी जानकारी सभी संबंधित प्राधिकारियों के लिये प्रकाशित की जानी चाहिए। पीठ ने कहा कि इस समय उसकी चिंता इन प्रवासी मजदूरों की तकलीफों और परेशानियों को लेकर है जो जल्द से जल्द अपने अपने पैतृक स्थानों पर पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं। न्यायालय ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि संबंधित राज्य सरकारें और केन्द्र शासित प्रदेश आवश्यक कदम उठा रहे हैं लेकिन इसके बाद भी कामगारों के यात्रा के पंजीकरण, उन्हें घर भेजने तथा उनके खाने-पीने के बंदोबस्त में अनेक कमियां पायी गयी हैं। पीठ ने सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता के इस कथन का भी संज्ञान लिया कि राज्य सरकारों को यह निर्देश दिये गये हैं कि सड़कों पर पैदल ही चल रहे कामगारों को बस या दूसरे वाहन की सुविधा उपलब्ध करायी जाये। पीठ ने कहा कि सड़कों पर पैदल ही जा रहा कोई भी कामगार दिखाई पड़ने पर उसे तत्काल आवास शिविर में पहुंचाया जाये और उसके लिये भोजन तथा दूसरी सुविधाओं की व्यवस्था की जानी चाहिए। न्यायालय ने कहा कि इस समय इन कामगारों की दुर्दशा को देखते हुये तत्काल ही कुछ अंतरिम निर्देश देने की आवश्यकता है। कोविड-19 महामारी की वजह से चार घंटे की नोटिस पर 25 मार्च से देश में लागू लॉकडाउन के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में लाखों भूखे प्यासे श्रमिक विभिन्न जगहों पर फंस गये। उनके पास ठहरने की भी सुविधा नहीं थी। इन श्रमिकों ने आवागमन का कोई साधन उपलब्ध नहीं होने की वजह से पैदल ही अपने-अपने घर की ओर कूच कर दिया था जिससे उनकी स्थिति काफी दयनीय हो गयी थी। न्यायालय ने कहा कि इन प्रवासी कामगारों की संख्या, इन्हें भेजने की योजना, इनके पंजीकरण के तरीके और दूसरी संबंधित जानकारियों का विवरण रिकार्ड पर लाया जाना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि रेलवे को राज्य सरकार के अनुरोध पर उसे ट्रेन उपलब्ध करानी होगी। न्यायालय ने इस मामले को पांच जून के लिये सूचीबद्ध करते हुये कहा कि केन्द्र और कुछ राज्यों तथा केन्द्रशासित प्रदेशों ने नोटिस पर अपने जवाब दाखिल किये हैं। पीठ ने सॉलिसीटर जनरल द्वारा केन्द्र की ओर से दी गयी इस दलील का भी संज्ञान लिया कि एक से 27 मई के दौरान इन कामगारों को ले जाने के लिये कुल 3,700 विशेष ट्रेन चलायी गयी और सीमावर्ती राज्यों में अनेक कामगारों को सड़क मार्ग से पहुंचाया गया। उन्होंने कहा कि करीब 91 लाख प्रवासी कामगारों को उनके पैतृक घरों तक पहुंचाया गया है। मेहता ने पीठ से कहा कि ये कामगार जब अपने गंतव्य पर पहुंचते हैं तो संबंधित राज्य सरकार उनके पृथकवास और स्क्रीनिंग करने जैसी आवश्यकताओं को देखती है। उन्होंने कहा कि सभी राज्यों ने अपने यहां राहत शिविर बनाये हैं जहां प्रवासी कामगारों को खाना और दूसरी सुविधायें उपलब्ध करायी जा रही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सारे कामगार अपने पैतृक राज्य नहीं जाना चाहते हैं और इनमें से कुछ काम करना चाहते हैं। इस मामले की सुनवाई के दौरान पीठ ने इन कामगारों की दयनीय स्थिति के संबंध में केन्द्र से अनेक तीखे सवाल पूछे। न्यायालय ने जानना चाहा कि आखिर इन कामगारों को अपने पैतृक शहर पहुंचने में कितना समय लगेगा और उनकी यात्रा के किराये का भुगतान कौन करेगा। न्यायालय ने इन कामगारों के लिये भोजन और पानी की व्यवस्था करने पर भी जोर दिया। पीठ ने मेहता से जानना चाहा कि आखिर इन श्रमिकों की यात्रा के भाड़े के भुगतान को लेकर किस तरह का भ्रम है। पीठ ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि इन कामगारों को अपने घर लौटने के लिये यात्रा के भाड़े का भुगतान करने के लिये बाध्य नहीं किया जाये। पीठ ने कामगारों की दुर्दशा पर चिंता वयक्त करते हुये मेहता से सवाल किया, ‘‘सामान्य समय क्या है? यदि एक प्रवासी की पहचान होती है तो यह तो निश्चित होना चाहिए कि उसे एक सप्ताह के भीतर या दस दिन के अंदर पहुंचा दिया जायेगा? वह समय क्या है? ऐसे भी उदाहरण हैं जब एक राज्य प्रवासियों को भेजती है लेकिन दूसरे राज्य की सीमा पर उनसे कहा जाता है कि हम प्रवासियों को नहीं लेंगे, हमें इस बारे में एक नीति की आवश्यकता है।’’
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