कपिल सिब्बल, अनिल अंबानी और कांग्रेस की मिलीभगत से देश को 650 करोड़ रूपये का चूना लगा-डाॅ. हर्श वर्धन
अंतिम प्रवक्ता, 1 अप्रैल। चांदनी चैक से भाजपा उम्मीदवार डाॅ. हर्श वर्धन ने यहां से कांग्रेसी सांसद और मंत्री कपिल सिब्बल तथा रिलायंस दूरसंचार के बीच आर्थिक, आपराधिक मिलीभगत का बड़ा खुलासा किया है। इसके तहत मंत्री पद पर रहते हुये कपिल सिब्बल ने रिलायंस कंपनी को विभाग के सचिव की सलाह की अवहेलना करते हुये 650 करोड़ रूपये का आर्थिक लाभ पहंुचाया। जबकि उन्हें रिलायंस कंपनी पर भारी जुर्माना करके उसका 13 परिक्षेत्रों में दूर संचार का लाइसेंस रद्द करना चाहिये था। डाॅ. हर्श वर्धन ने इस घोटाले की न्यायिक जांच की मांग की है।
उन्होंने पत्रकारों को बताया कि देश के ग्रामीण क्षेत्र की करोड़ों जनता को दूरसंचार का लाभ पहुंचाने के लिये वर्श 1999 में श्री अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार ने एक टेलीकाॅम नीति बनाई थी। इसके तहत ग्रामीण क्षेत्रों में टेलीफोन और मोबाइल आदि की सुविधायें देने वाली प्राइवेट कंपनियों को लाभ न होने की स्थिति में सरकार द्वारा सब्सिडी देने का प्रावधान किया गया था ताकि कंपनियों को हानि न हो और देश की करोड़ों ग्रामीण नागरिकों को दूरसंचार की आधुनिक सुविधायें गांव स्तर पर मिल सकें। इससे देश को संचारक्रांति के जरिये सुदूर तक जोड़ने की महत्वाकांक्षी योजना पर एनडीए सरकार ने अपनी दूरदृश्टि के तहत कार्य किया था।
देश में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनने पर भी यह पाॅलिसी लागू रही। इस पाॅलिसी का जबरदस्त उल्लंघन करते हुये रिलायंस कंपनी ने आम तौर पर पिछड़ा और गरीब कहे जाने वाले पूर्वोत्तर क्षेत्र के 13 परिक्षेत्रों में अपनी दूरसंचार सेवायें देना 22 नवंबर, 2010 से अचानक बंद कर दिया। जब दूरसंचार विभाग ने रिलायंस कंपनी से सेवायें एकतरफा बंद करने का कारण पूछा तो इस कंपनी ने सरकार को जवाब देना भी मुनासिब नहीं समझा। बाद में रिलायंस ने यह बहाना बनाया कि इन 13 परिक्षेत्रों में उसे घाटा हो रहा था। रिलायंस कंपनी ने सरकार को सरासर गलत सूचना दी थी क्योंकि इस कंपनी को वाजपेयी सरकार की टेलीकाॅम नीति के तहत यूनिवर्सल सर्विसेज आॅब्लीगेषन फंड के जरिये पर्याप्त सब्सिडी सरकार दे रही थी और उसके सामने घाटे का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता था।
यहां बताना जरूरी है कि सरकार और प्राइवेट कंपनियों के बीच कोई विवाद पैदा होने पर विवाद हल करने के लिये रिलायंस कंपनी को टेलीकाॅम डिस्प्यूट्स सेटिलमेंट आर्बीट्रेषन ट्रिब्यूनल के पास जाना चाहिये था न कि उसे एकतरफा दूरसंचार सेवायें बंद कर देनी थीं। इस मामले में रिलायंस कंपनी ने सरकार के सभी निर्देषों, कानूनों, नीतियों और संस्थाओं का सरासर उल्लंघन किया था। ट्रिब्यूनल के नियमों के तहत किसी भी कंपनी के षिकायत की सुनवाई तभी हो सकती थी जब वह जुर्माना अदा करके ट्रिब्यूनल के पास केस दाखिल करे।
21 दिसंबर, 2010 को मंत्रालय ने रिलायंस कंपनी को नोटिस जारी किया कि यूनिवर्सल एक्सेस सर्विस लाइसेंसेज के तहत प्रति परिक्षेत्र 50 करोड़ रूपया जुर्माना अदा करे क्योंकि यही कानून था। यहां रिलायंस कंपनी यूएसएएल समझौते की षर्तों का एकतरफा उल्लंघन किया था और अपनी सेवायें देना अचानक बंद कर दिया था। 5 जनवरी, 2011 को दूरसंचार मंत्रालय के तहत कार्य करने वाले संगठन यूनिवर्सल एक्सेस आॅब्लीगेषन फंड एडमिनिस्ट्रेटर को रिलायंस कंपनी ने पत्र लिखा कि वह 13 परिक्षेत्रों में अपनी सेवायें पुनः देना चाहती है, इसके लिये उसे 6 सप्ताह का समय दिया जाये। सरकार ने मना कर दिया।
9 फरवरी, 2011 को दूरसंचार सचिव जो कि टेलीकाॅम आयोग के चेयरमैन भी होते हैं, ने रिलायंस कंपनी पर प्रति परिक्षेत्र 50 करोड़ रूपया जुर्माना भरने का आदेश पारित किया। आष्चर्य है कि इस कंपनी के 13 लाइसेंस रद्द करने के चेयरमैन के आदेश वाली फाइल उसी दिन मंत्री कपिल सिब्बल ने अपने पास मंगा ली और उन्होंने दो दिन के अंदर ही रिलायंस का एकतरफा पक्ष लेते हुये आयोग के चेयरमैन के आदेश को धता बताकर 13 परिक्षेत्रों की सेवायें पुनः चालू करने के आदेश रिलायंस कंपनी को दे दिये। यह कंपनी अनिल अंबानी की है। कपिल सिब्बल का अनिल अंबानी की कंपनी को संरक्षण देना एक शडयंत्र नजर आता है।
मंत्री महोदय ने करोड़ों जनता के हितों की परवाह ने करके सिर्फ अनिल अंबानी का आर्थिक हित देखा और कंपनी पर लगाया गया 650 करोड़ जुर्माना माफ कर दिया। इसमें करोड़ों रूपये के लेन देन का आरोप मंत्री कपिल सिब्बल पर है। यहां बताना जरूरी है कि देश का षायद यह पहला मामला है जिसमें दूरसंचार मंत्री रहते हुये श्री कपिल सिब्बल ने काॅरपोरेट जगत के अनिल अंबानी के लिए खुलकर बैटिंग की और उन्हें लाभ पहुंचाया। यदि श्री कपिल सिब्बल ने गांवों की गरीब जनता का ख्याल किया होता तो आज देश का पूर्व-उत्तर इलाका भी संचार क्रांति का लाभ उठा रहा होता
यहां बताना जरूरी है कि पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा के जमाने में 1.76 लाख करोड़ रूपये का जो 2जी स्कैम हुआ था, उसका मंत्री कपिल सिब्बल ने यह कहके बचाव किया था कि 2जी स्कैम से देश को कोई आर्थिक नुकसान नहीं हुआ है। उनके इस झूठ का खुलासा जनवरी, 2014 में उस समय हुआ जब लाइसेंस देने की नई नीति के तहत खुली नीलामी हुई और पहली नीलामी में ही 353.2 मेगाहर्ट्ज स्पैक्ट्रम के तहत सरकार को 61,000 करोड़ रूपये का फायदा हुआ।
डाॅ. हर्श वर्धन ने आम आदमी पार्टी और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से सवाल किया है कि मुकेष अंबानी सहित देश के अनेक काॅर्पोरेट हस्तियों पर भ्रश्टाचार का आरोप लगाने वाले ये लोग अनिल अंबानी और कपिल सिब्बल की आर्थिक सांठगांठ से देश को 650 करोड़ रूपये का नुकसान होने का मामला जनता और मीडिया के समक्ष किस कारण नहीं उछाल रहे हैं। क्या अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस तथा अनिल अंबानी के बीच कोई गुप्त समझौता हुआ है? क्या यह, यह नहीं साबित करता कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस पार्टी की बी टीम है? अंबानी की कंपनी रिलायंस ने 16 नवंबर, 2010 से लेकर 16 फरवरी, 2011 के बीच 13 परिक्षेत्रों में दूरसंचार सेवायें अपनी कंपनियों आरसीएल-आरटीएल के तहत देना बंद कर दिया था। इनसे जुर्माना वसूलने के स्थान पर इन्हें दोबारा सेवायें षुरू करने की गैर कानूनी इजाजत मंत्री कपिल सिब्बल ने क्यों दी?
यहां बताना जरूरी है कि मंत्री कपिल सिब्बल के कार्यकाल में ग्रामीण क्षेत्रों में दूरसंचार कनेक्टिविटी देने के लिये जो पैसा खर्च किया जाना था, वह नहीं किया गया। विभाग के पास आज भी इस मद में 18,000 करोड़ रूपया फालतू पड़ा है। इससे देश का ग्रामीण इलाकों का विकास रूका पड़ा है। क्या इसके लिये मंत्री कपिल सिब्बल जिम्मेदार नहीं हैं? उनके कार्यकाल में दूरसंचार विभाग में विकास के काम कम और घोटाले ज्यादा हुये। क्या इसके लिये कपिल सिब्बल जवाबदेह नहीं हैं? टेलीकाॅम रेगुलेटरी अथाॅरिटी आॅफ इंडिया (ट्राई) की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन क्षेत्रों में अनिल अंबानी की कंपनियों को कार्य दिया गया था, वहां इंटरनेट और सेलुलर टेलीफोन कनेक्टिविटी देश के अन्य क्षेत्रों से काफी खराब और खस्ताहाल है। इसके बाद भी अनिल अंबानी की कंपनियों को दोबारा कार्य करने का मौका कपिल सिब्बल ने क्यों दिया? यह गंभीर
जांच का बिषय है।