कृषि विकास के लिए परम्परागत तकनीकों को बदलने की जरूरत – प्रधानमंत्री
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने देष के किसानों का आह्वान किया है कि वे भारत को कृषि क्षेत्र में अग्रणी बनाने के लिए परम्परागत तकनीकों को बदलें और नवीन तकनीकों को अपनाएं। उन्होंने किसानों को हर वर्ष मिट्टी का परीक्षण कराने की सलाह देते हुए कहा कि किसान को यदि खेत की मिट्टी के स्वास्थ्य की जानकारी होगी तो न सिर्फ पैदावार अधिक होगी, बल्कि अनावष्यक उर्वरकों पर होने वाले खर्च को भी बचाया जा सकेगा।
प्रधानमंत्री गुरूवार को यहां सूरतगढ़ में आयोजित सॉयल हैल्थ कार्ड स्कीम के शुभारम्भ एवं कृषि कर्मण पुरस्कार वितरण समारोह के दौरान उपस्थित जनसमूह को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि इस राष्ट्रव्यापी योजना का आरम्भ राजस्थान की मरूभूमि से किया जा रहा है और इसके जरिए देष के किसानों को यह संदेष देने का प्रयास किया जा रहा है कि जिस तरह से मां की तबीयत का ध्यान रखना जरूरी होता है, उसी तरह से धरती मां के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना जरूरी है।
श्री मोदी ने कहा कि इस योजना का ध्येय वाक्य ‘स्वस्थ धरा, खेत हरा’ है। उन्होंने जानकारी दी कि इस योजना के तहत मिट्टी का परीक्षण कराया जाएगा और उसी के अनुसार आवष्यक वैज्ञानिक तौर तरीके अपनाकर मृदा के पोषण तत्वों की कमियों को दूर किया जाएगा। स्वस्थ धरा होगी, तभी खेत हरा होगा। समय की मांग है कि हम धरती मां की चिंता करें तभी धरती मां हमारी चिंता करेगी। ‘सुजलाम, सुफलाम’ का सपना भी तभी पूरा होगा।
श्री मोदी ने कहा कि पिछले समय में भारत सरकार की योजनाएं नई दिल्ली के विज्ञान भवन में कुछ लोगों को बुलाकर आरंभ कर दी जाती थीं, लेकिन वे अब इस आदत को बदल रहे हैं। उन्होंने कहा कि पिछले दिनों उन्होंने बेटी बचाओ योजना हरियाणा में इस वजह से शुरू की क्योंकि वहां लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या कम है और वहां से बेटी बचाने का संदेष पूरे देष में गया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि राजस्थान में पानी की कमी है और इसके लिए रास्ते खोजने ही होंगे। उन्होंने कहा कि इसी धरा पर लाखा बनजारा हुआ था। उसने जहां पानी नहीं था वहां बावड़ियां बनवाई और प्यासों को पानी पिलाया। उन्होंने कहा कि पानी परमात्मा का प्रसाद है। जिस तरह से प्रसाद को गिरने से बचाया जाता है उसी तरह से पानी की भी एक-एक बूंद बचाना जरूरी है।
श्री मोदी ने कहा कि जिस तरह पानी का अभाव जितना खतरनाक होता है, उतना ही खतरनाक उसका प्रभाव भी है। श्रीगंगानगर का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि यहां पानी का अनाप-षनाप उपयोग किया गया है और इस वजह से खेतों की मिट्टी में पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ गया है। उन्होंने किसानों को खेती में ड्रिप इरिगेषन, माइक्रो इरिगेषन, स्प्रिंकलर आदि नवीन पद्धतियां अपनाकर सिंचाई में पानी बचाने की सलाह दी।
प्रधानमंत्री ने कहा कि पहले योजनाएं टॉप टू बॉटम यानी केन्द्र से राज्यों की ओर चलती थीं लेकिन अब वे इसे बॉटम टू टॉप यानी राज्यों से केन्द्र की ओर चलाने के पक्षधर हैं। उन्होंने राजस्थान में ‘कैंसर एक्सप्रेस’ चलने का जिक्र करते हुए कहा कि नीति आयोग के माध्यम से सभी राज्यों के कृषि विभागों से कह दिया गया है कि वे उच्च स्तरीय विषेषज्ञ समिति का गठन कर कृषि क्षेत्र की समस्याओं के आधार पर योजनाएं बनाएं। बाद में सभी राज्यों की योजनाओं में से न्यूनतम समान योजनाओं का चयन कर उन्हें केन्द्रीय स्तर पर लागू किया जाएगा।
पड़ोसी राज्यों के बीच पानी की समस्या के मामले में प्रधानमंत्री ने कहा कि मिलजुल कर रास्ते खोजने होंगे तथा छोटी-मोटी कठिनाइयों से आगे बढ़कर देष के विकास के बारे में सोचना होगा।