जनधन के दुरूपयोग और आपराधिक न्यास भंग के लिए श्रीमती षीला दीक्षित के खिलाफ आपराधिक षिकायत
भाजपा दिल्ली प्रदेष अध्यक्ष श्री विजय गोयल और पूर्व प्रदेष अध्यक्ष श्री विजेन्द्र गुप्ता ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर यह बताया है कि वर्श 2008-09 के दौरान चुनाव अभियान पर छूठे विज्ञापन प्रकाषित करने, सरकारी तंत्र और जनधन का दुरूपयोग करने तथा आपराधिक न्यास भंग कर के लिये मुख्यमंत्री श्रीमती षीला दीक्षित के खिलाफ सीबीआई के निदेषक के समक्ष आपराधिक षिकायत दर्ज कराई है।
दोनों नेताओं ने यह कहा कि मुख्यमंत्री ने अपने लिये और अपनी पार्टी के राजनैतिक अभियान के लिए जनधन और सरकारी तंत्र का दुरूपयोग कर समाचार पत्रों में विज्ञापन प्रकाषित कराये, दिल्ली भर में होर्डिंग भी लगवाये जिन पर यूपीए की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी और श्रीमती षीला दीक्षित के चित्र थे तथा रेडियो जिन्गल सरकारी विज्ञापन के रूप में प्रचारित किये गये जिन पर सरकारी खजाने से धन खर्च किया गया। सरकारी विज्ञापन इस प्रकार प्रकाषित किये गये जिससे राजनैतिक उद्देष्य लाभ प्राप्त किया जा सके।
श्रीमती षीला दीक्षित उस समय सूचना और प्रसारण निदेषालय की प्रभारी मंत्री भी थीं जिस समय ये विज्ञापन जारी किये गये। श्रीमती दीक्षित इसके लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार थीं। उपरोक्त चुनावी वर्श के दौरान सूचना और प्रसारण निदेषालय द्वारा विज्ञापन श्रीमती दीक्षित के आदेष पर जारी किये गये थे जिससे कि कांग्रेस पार्टी और उनके हित में निर्वाचन के दौरान सरकारी खर्चे पर माहौल बनाया जा सके। इतना ही नहीं सरकारी विज्ञापनों की संख्या चुनाव वर्श में पांच गुनी हो गई। मुख्यमंत्री ने पार्टी और अपने हित में लगभग 22.56 करोड़ रूपये सरकारी खजाने से खर्च किये।
यह उल्लेखनीय है कि पूर्व भाजपा दिल्ली प्रदेष अध्यक्ष श्री विजेन्द्र गुप्ता ने इस संबंध में दिल्ली के लोकायुक्त के समक्ष एक षिकायत दर्ज कराई थी। इस षिकायत पर लोकायुक्त ने तारीख 22-5-2012 को अपने आदेष में यह सिफारिष की है कि मुख्यमंत्री को वर्श 2007-08 में सरकारी विज्ञापनों के रूप में प्रकाषित उनके राजनैतिक अभियान चलाने के खिलाफ चेतावनी दी जाये जैसा कि “षीला की कैमपेन रणनीति“ वाले लेख से स्पश्ट होता है। यह अभियान उनकी पार्टी के हित में चलाया गया था और जिसमें उन्होंने अपने पद का दुरूपयोग किया जो उन नियमों और आचरणों के विरूद्ध था जिसका पालन मुख्यमंत्री और मंत्रियों द्वारा किया जाना चाहिए था। इसके अतिरिक्त लोकायुक्त ने मुख्यमंत्री को स्वयं अथवा पार्टी के माध्यम से 11 करोड़ रूपये सरकारी खजाने में जमा करने के लिए भी कहा जो उस चुनाव वर्श में विज्ञापन पर खर्च की गई रकम का लगभग 50 प्रतिषत बनता है।
श्री गोयल और श्री गुप्ता ने आगे कहा कि माननीय लोकायुक्त का निर्णय स्पश्ट रूप से यह दिखाता है कि श्रीमती षीला दीक्षित जो उस समय मुख्यमंत्री तथा सूचना और प्रसारण की प्रभारी मंत्री भी थीं, अन्य व्यक्तियों के साथ एक शड़यंत्र
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रचा था जिसका उद्देष्य अपने हित में सरकारी खजाने का दुरूपयोग करना था। इस उद्देष्य की प्राप्ति के लिए उन्होंने 22.56 करोड़ रूपये की राषि का दुरूपयोग किया जो एक न्यासी होने नाते विधि के अधीन दिये गये निदेषों के विरूद्ध किया गया और यह जनसेवक होने के नाते आपराधिक न्याय भंग का अपराध है। इतना ही नहीं उन्होंने अन्य व्यक्तियों को ऐसे आपराधिक कार्य करने दिये जो भ्रश्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के अधीन दंडनीय है।
उन्होंने श्रीमती षीला दीक्षित के खिलाफ भारतीय दंडसंहिता और भ्रश्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के अधीन तुरन्त कार्रवाई करने की मांग की।
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