मुस्लिम महिलाओं को रोता-बिलखता नहीं छोड़ सकते: प्रसाद
नई दिल्ली, 30 जुलाई (अंतिम प्रवक्ता)। तीन तलाक प्रथा को इस्लाम के खिलाफ तथा इससे संबंधित विधेयक को सरकार के सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास सिद्धांत के अनुरूप बताते हुए कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने राज्यसभा में कहा कि ऐसे मामलों की पीड़ित मुस्लिम महिलाओं को रोता-बिलखता नहीं छोड़ सकते। प्रसाद ने कहा कि तीन तलाक पर रोक के लिए अब तक कानून नहीं होने के कारण पुलिस प्राथमिकी भी दर्ज नहीं करती। ऐसे में क्या उन पीड़ित महिलाओं को रोते-बिलखते छोड़ दिया जाए। उन्होंने कहा कि अगर उन्हें न्याय की जरूरत होगी तो हम उनके साथ खड़े होंगे। वह उच्च सदन में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2019 पर हुयी चर्चा का जवाब दे रहे थे। यह विधेयक तीन तलाक पर रोक के मकसद से लाया गया है। विधेयक पर हुयी चर्चा में विपक्ष के कई सदस्यों ने इसे अपराध की श्रेणी में डालने और सजा का प्रावधान किए जाने पर आपत्ति जतायी थी। प्रसाद ने नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद का नाम लेते हुए कहा कि हिन्दू विवाह कानून उनकी पार्टी की सरकार ने पारित किया जिसमें निर्धारित उम्र से पहले विवाह करने के आरोप में दो साल की सजा का प्रावधान किया गया है। उन्होंने कहा कि 55 साल पहले जब उनकी सरकार ने यह काम किया तो क्या उस समय उसका विवाद किया जाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की तत्कालीन सरकार 1961 में दहेज के विरोध में कानून लायी थी। उन्होंने कहा कि 1981 में दहेज लेने को गैर जमानती अपराध बनाया गया। उस समय क्यों नहीं कहा गया कि पति जेल चला गया तो पत्नी का गुजारा भत्ता कौन देगा? उन्होंने सवाल, इतने प्रगतिशील काम करने वाली कांग्रेस की सरकार के शाहबानो मामले में कदम कैसे डगमगा गये? 1986 में कांग्रेस की सरकार ने शाहबानो के लिए न्याय के दरवाजे कैसे बंद कर दिए। गौरतलब के शाहबानो को गुजाराभत्ता देने के उच्चतम न्यायालय के आदेश को पलटते हुए तत्कालीन कांग्रेस सरकार संसद में एक विधेयक लेकर आयी थी। कानून मंत्री ने कहा कि कांग्रेस ने आजादी के आंदोलन में सांप्रदायिकता का विरोध किया था लेकिन वह 2019 में सांप्रदायिकता की गाड़ी पर कैसे खड़ी है? उन्होंने कहा कि कांग्रेस को इस बात पर विचार करना चाहिए कि 1986 के बाद कांग्रेस को फिर कभी अपने बूते पर बहुमत क्यों नहीं मिल पाया? प्रसाद ने स्पष्ट किया कि सरकार मौजूदा विधेयक उच्चतम न्यायालय के आदेश के कारण नहीं लायी है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक को कानून बनाने के लिए उच्चतम न्यायालय के आदेश की जरूरत नहीं है। प्रसाद ने कहा कि एक प्रसिद्ध न्यायाधीश आमिर अली ने 1908 में एक किताब लिखी थी। किताब की कुछ पंक्तियों को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि पैगंबर मोहम्मद ने भी तलाक ए बिद्दत का विरोध किया था। उन्होंने कहा कि एक मुस्लिम आईटी पेशेवर ने उनसे कहा कि तीन बेटियों के जन्म के बाद उसके पति ने उसे एसएमएस से उसे तीन तलाक कह दिया। उन्होंने एक कानून मंत्री के रूप में मैं उससे क्या कहता? क्या यह कहता कि उच्चतम न्यायालय के निर्णय को मढ़वा कर रख लो। अदालत में अवमानना का मुकदमा करो। पुलिस कहती है कि हमें ऐसे मामलों में कानून में अधिक अधिकार चाहिए। कानून मंत्री ने शाहबानो मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले को पलटने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार द्वारा लाये गये विधेयक का जिक्र करते हुए कहा, मैं नरेन्द्र मोदी सरकार का कानून मंत्री हूं, राजीव गांधी सरकार का कानून मंत्री नहीं हूं। उन्होंने कहा कि जब इस्लामिक देश अपने यहां अपनी महिलाओं की भलाई के लिए बदलाव की कोशिश कर रहे हैं तो हम तो एक लोकतांत्रिक एवं धर्मनिरपेक्ष देश हैं, हमें यह काम क्यों नहीं करना चाहिए?प्रसाद ने कहा कि तीन तलाक से प्रभावित होने वाली करीब 75 प्रतिशत महिलाएं गरीब वर्ग की होती हैं। ऐसे में यह विधेयक उनको ध्यान में रखकर बनाया गया है। उन्होंने कहा कि हम सबका साथ सबका विकास एवं सबका विश्वास में भरोसा करते हैं और इसमें हम वोटों के नफा नुकसान पर ध्यान नहीं देंगे और सबके विकास के लिए आगे बढ़ेंगे और उन्हें (मुस्लिम समाज) को पीछे नहीं छड़ेंगे। उन्होंने कहा कि यदि मंशा साफ हो तो लोग बदलाव की पहल का समर्थन करने को तैयार रहते हैं। उन्होंने इस क्रम में नागरिकता विधेयक का जिक्र करते हुए कहा कि आशंका जतायी जा रहा थी कि इससे पार्टी को नुकसान हो सकता है। लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान पूर्वोत्तर के चुनाव नतीजों से साफ है और हमारा प्रदर्शन काफी अच्छा रहा और विधेयक से जुड़ी आशंकाएं गलत साबित हुयीं। प्रसाद ने कहा कि इस मुद्दे को राजनीतिक चश्मे या वोट बैंक की राजनीति के नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिये। यह मानवता और इंसानियत का सवाल है। उन्होंने कहा कि यह मुद्दा नारी गरिमा, नारी न्याय और नारी उत्थान से भी जुड़ा हुआ है। उन्होंने आज के दिन को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि 20 से ज्यादा इस्लामी देशों ने अपने यहां इस प्रथा पर रोक लगा दी है। उन्होंने विधेयक की पृष्ठभूमि का जिक्र करते हुए कहा कि तीन तलाक की पीड़ित कुछ महिलाओं द्वारा उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाने पर शीर्ष अदालत ने इस प्रथा को गलत बताया। इसके साथ ही इस संबंध में कानून बनाने की बात कही गई। प्रसाद ने कहा कि 2017 से अब तक तीन तलाक के 574 मामले सामने आये हैं। इस बारे में शीर्ष अदालत के फैसले के बाद भी ऐसे 345 मामले आए और अध्यादेश जारी करने के बाद भी 101 मामले आए हैं।
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