हाथरस में ऐसा माहौल बना दिया गया है कि जैसे यूपी सबसे ज्यादा अपराध वाला राज्य हो I
हाथरस में ऐसा माहौल बना दिया गया है कि जैसे यूपी सबसे ज्यादा अपराध वाला राज्य हो I
अशोक भाटिया
अंतिम प्रवक्ता नई दिल्ली 06 अक्टूबर । हाथरस कांड के बाद कुछ राजनैतिक दलों एवं मीडिया ने ऐसा माहौल बना दिया गया है कि जैसे यूपी सबसे ज्यादा अपराध वाला राज्य हो। महिलाओं के खिलाफ उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश में अपराध का ग्राफ बढ़ा हैए तो फिर और प्रदेशों में महिलाओं के साथ हो रहे अपराध पर चुप्पी साध कर सिर्फ यूपी को क्यों बदनाम किया जा रहा है। पूरे देश में उत्तर प्रदेश की छवि ऐसी बनाई जा रही हैए मानों यह प्रदेश महिलाओं के रहने लायक ही नहीं बचा हैए जबकि कांग्रेस शासित राजस्थान में महिलाओं के साथ यूपी से कहीं अधिक अपराध हो रहे हैं। कांग्रेस शासित महाराष्ट्रए झारखंड और पंजाब का भी यही हाल हैए लेकिन लगता है कि राहुल.प्रियंका ने उत्तर प्रदेश को अपनी सियासी प्रयोगशाला बना लिया है। उनका हर वार योगी सरकार पर ही होता हैए जबकि दोनों राष्ट्रीय स्तर के नेता हैं।
उत्तर प्रदेश के चर्चित हाथरस कांड में भी ऐसा ही हो रहा हैए एक बच्ची अपनी जान से चली गई इसकी किसी को चिंता नहीं है। पूरा ध्यान इस बात पर लगा है कैसे इस कांड को अधिक से अधिक उछाल कर योगी सरकार के सामने चुनौती खड़ी की जाए। सबसे दुख की बात यह है कि पीड़ित युवती का परिवार भी ओछी सियासत के चपेटे में आ गया है। ऐसा लग रहा है जैसे हाथरस में पीड़ित युवती जो इस दुनिया में नहीं रहीए को इंसाफ दिलाने के नाम पर ष्गिद्ध भोजष् चल रहा हो। कांग्रेस के राहुल.प्रियंका हों या फिर समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादवए सब के सब अपने लाव.लश्कर के साथ सियासी मैदान में कूद पड़े हैं। जिस तरह कुछ नेता हाथरस मुद्दे पर राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे हुए हैंए वह केवल निंदनीय ही नहीं शर्मनाक भी है। विचलित करने वाली इस घटना पर कितनी छिछोरी और सस्ती राजनीति हो सकती हैए इसका उदाहरण है उन मुख्यमंत्रियों के भी नसीहत भरे बयानए जिनके अपने राज्य में ऐसी ही घटनाएं घटती रहती हैं। क्या जघन्य अपराध पर चिंता व्यक्त करने के लिए क्षुद्रता भरी राजनीति जरूरी हैघ्
क्यों कांग्रेस के गांधी परिवार को उत्तर प्रदेश में होने वाले अपराध ही नजर आते हैं। राजस्थान की बेटियों के साथ बलात्कार होता है तो क्यों गांधी परिवार वहां नहीं जाता है। महाराष्ट्र में बेटियों के साथ जो हो रहा है उससे वह क्यों आंख मूंदे हुए हैं। एक राष्ट्रीय नेता के लिए यह शोभा नहीं देता है कि वह अपने दामन के दाग को छिपाए और दूसरे के दामन पर कीचड़ उछाले। इससे अधिक दुखद क्या हो सकता है कि अब तो गांधी परिवारए योगी सरकार को घेरने के लिए साजिश तक रचने से बाज नहीं आ रहा है। वह पैसा खर्च करके तमाम राज्यों की भाजपा सरकारों के खिलाफ धरना.प्रदर्शन कराता है ताकि माहौल बिगाड़ा जा सके। हाथरस कांड में भी ऐसा ही होता देखा जा रहा है। एक वीडियो आडियो वायरल हो रहा है जिसमें एक कांग्रेसी पीड़ित परिवार वालों को उकसा रहा है कि योगी सरकार 25 लाख दे रहे हैंए हम तुम्हें 50 लाख देंगे। इसके बदले में यह कांग्रेसी मीडिया के सामने अपनी मर्जी का बयान पीड़ित परिवार वालों से दिलाना चाह रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि हम कुछ मीडिया कर्मियों को अरेंज करके भेज रहे हैं ताकि मामले को और ज्यादा तूल दिया जा सके।
समझ में नहीं आता है क्यों हमारे राजनीतिक दल इस ताक में बैठे रहते हैं कि विरोधी दल के राज्य में कोई गंभीर घटना घटे तो वे वहां दौड़ लगाएंघ् क्या इस तरह की गिद्ध राजनीति से समाज की उस मानसिकता का निदान हो जाएगाए जिसके चलते कमजोर तबके हिंसा का शिकार बनाए जाते हैंघ् हर अपराध को सियासी जामा पहना देने के चलते अक्सर असली अपराधी छूट जाते हैं। पुलिस को उसका काम नहीं करने दिया जाता है। उसकी सही बात को भी मिर्च मसाला लगाकर पेश किया जाता है। यह सच है कि हाथरस कांड में पुलिस की भूमिका ठीकठाक नहीं रही। खासकरए पुलिस ने जिस तरह से परिवार वालों की गैर.मौजूदगी में आधी रात को युवती का अंतिम संस्कार कर दिया हैए उसकी कड़ी से कडी सजा तो दोषी पुलिस वालों को मिलना ही चाहिएए लेकिन यदि योगी सरकार ष्दूध का दूध और पानी का पानीष् करने के लिए पुलिस सहित सभी पक्षों का नार्को टेस्ट कराने की बात कह रही है तो इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
निःसंदेह हाथरस कांड की कड़ी से कड़ी भर्त्सना होनी चाहिएए लेकिन यह बताने के लिए नहीं कि उत्तर प्रदेश को छोड़कर शेष देश में दलित समुदाय का मान.सम्मान हर तरह से सुरक्षित है या फिर दुष्कर्म की घटनाएं केवल इसी प्रदेश में घट रही हैं। अपनी राजनीति चमकाने के लिए ऐसा शरारत भरा संदेश देने वालों को राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े देखने चाहिएए जो यह बताते हैं कि दलितों के खिलाफ अपराध देश के सभी हिस्सों में हो रहे हैं। इन आंकड़ों के हिसाब से राजस्थान में दलितों के खिलाफ सबसे ज्यादा अपराध हो रहे हैं। क्या यह उचित नहीं होता कि हाथरस जाने की जिद पकड़े राहुल गांधी राजस्थान का भी दौरा करने की जरूरत समझतेघ् दलितों के खिलाफ अपराध को दलगत राजनीति के चश्मे से देखने वाले दलित समुदाय के हितैषी नहीं हो सकते। आखिर क्या कारण है कि उत्तर प्रदेश का शासन.प्रशासन तो सबके निशाने पर हैए लेकिन उस दलित और स्त्री विरोधी मानसिकता के खिलाफ मुश्किल से ही कोई आवाज सुनाई दे रही हैए जो हाथरस सरीखी घटनाओं के लिए जिम्मेदार हैघ् यह सही नहीं है कि राजनीतिक दल और कुछ कथित बुद्धिजीवी अपने.अपने संकीर्ण एजेंडे के हिसाब से दलितों के खिलाफ होने वाले अपराध पर सड़क पर उतरना पसंद करते हैं। इससे भी खराब बात यह है कि अब यही काम कुछ सामाजिक संगठन भी करने लगे हैं। इस तरह की भोंडी राजनीति से तो दलित समाज अपने को ठगा हुआ ही महसूस करेगा।
बलात्कार पर बेमतलब की राजनीति
सियाराम पांडेय श्शांतश्.
अंतिम प्रवक्ता नई दिल्ली 06 अक्टूबर । हाथरस में बलात्कार के बाद लड़की की मौत का मामला सुर्खियों में हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में माताओं.बहनों के सम्मान.स्वाभिमान को क्षति पहुंचाने का विचार मात्र रखने वालों का समूल नाश सुनिश्चित है। यूपी सरकार प्रत्येक माता.बहन की सुरक्षा और विकास हेतु संकल्पबद्ध है। यह हमारा संकल्प है। वचन है। इससे बड़ा आश्वासन भला और क्या हो सकता है लेकिन इसके बाद भी विपक्ष के कुछ नेता हाथरस दिवंगत पीड़िता के परिजनों को आश्वासन देने जा रहे हैं। पुलिस उन्हें रोक रही है। धक्का.मुक्की में वे गिर रहे हैं। राहुल गांधी गिर चुके हैं। तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन और प्रतिमा मंडल गिर चुकी हैं। ममता ठाकुर ने तो पुलिस पर इस तरह के गंभीर आरोप लगा दिए हैं जैसा आरोप लगाने से पहले महिलाएं सौ बार सोचती हैं।
हाथरस में सबको पता है कि धारा 144 लगी है। सांसदों को इतना पता तो है ही कि धारा 144 भीड़ एकत्र न होने देने की इजाजत नहीं देती फिर भी कुछ नेता आश्वासन देना चाहते हैं। कोरे आश्वासन से वैसे भी क्या होना .जाना है। आश्वासन की जगह लाख.दो लाख दे देते तो परिजनों का कुछ भला भी होता। कोरे आश्वासन और सहानुभूति से होता ही क्या है लेकिन नेता हैं कि मान ही नहीं रहे हैं। आश्वासन देने हाथरस जा रहे हैं। पुलिस से लुकाछिपी का खेल खेल रहे हैं। राहुल गांधी को महात्मा गांधी की जयंती से एक दिन पूर्व हाथरस नहीं जाने दिया गया था। उनकी यात्रा कार और पैदल दिल्ली से नोएडा तक ही सिमट कर रह गई। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। गांधी जयंती पर राहुल गांधी ने ट्वीट किया है कि ष्मैं दुनिया में किसी से नहीं डरूंगा। मैं किसी के अन्याय के समक्ष झुकूं नहींए मैं असत्य को सत्य से जीतूं और असत्य का विरोध करते हुए मैं सभी कष्टों को सह सकूं। संकल्प अच्छा है। ईश्वर उनके इस संकल्प को पूरा करे। गांधी जयंती से एक दिन पहले भी उन्होंने कुछ ऐसा ही कहा था। दूसरे दिन से सरकार ने सीमित संख्या में विपक्ष को पीड़िता के गांव जाने की इजाजत भी दे दी। दोषी पुलिस अफसरों पर कार्रवाई भी की और घटना की सीबीआई जांच के आदेश भी दिए लेकिन इसके बाद भी हाथरस जिले में स्थित पीड़िता के गांव में विपक्षी दलों का जाना थमा नहीं है। अति उत्साही नेता पुलिस से उलझ भी रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है कि जिन्हें उत्तर प्रदेश का विकास रास नहीं आ रहा हैए वे राजनीतिक दलए स्वयंसेवी संगठन उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने में जुटे हैं। विषयांतर हुए बगैर हम केवल राजनीतिक आश्वासनों की बात करना चाहेंगे।
विचारणीय तो यह है कि आश्वासन कहीं से भी दिया जा सकता हैए कभी भी दिया जा सकता है।आज का युग डिजिटल है। आश्वासन ही नहींए आर्थिक सहयोग भी दिया जा सकता है। जब पूरी राजनीति ट्वीट और वेबिनार पर हो सकती हैं। चुनावी रैलियां तक वेबिनार से हो रहे हैं। बड़े.बड़े सेमिनार और समारोह वेबिनार पर हो रहे हैं तो आश्वासन देना कौनसी बड़ी बात है। आश्वासन देने के चक्कर में कोरोना अपनी चपेट में न ले लेए इस लिहाज से भी इससे मुफीद रास्ता दूसरा नहीं है। आश्वासन देने के लिए पूरा देश हैंए जहां.जहां इस तरह की घटना होती हैए हर जगह विपक्ष को जाना चाहिएए आश्वासन देना चाहिए। दुखियों के आंसू पोंछने चाहिए लेकिन वह एक ही विंदु पर आत्मकेंद्रित क्यों हो जाता हैए मंथन तो इस पर होना चाहिए।
सवाल यह है कि आश्वासन ट्वीट पर दिया तो जा सकता है लेकिन मौके पर जाकर आश्वासन देने की बात ही जुदा है। वह बात नहीं बनतीए वह अनुभूति नहीं होती जो आष्वासन देते वक्त होनी चाहिए। देने वाले को भीए लेने वाले को भी। यह तो वही बात हुई कि जंगल में मोर नाचा किसने देखा। राजनीति का मोर तो नाचता भी है और दिखता भी है। राजनीति में जो दिखता हैए वही तो बिकता है। राजनीति का आदमी उसी को फल खिलाता है जो उसका प्रचार करे। किसी गूंगे को फल खिलाने पर अपनी ऊर्जा नष्ट नहीं करता क्योंकि गूंगा व्यक्ति अंदर ही अंदर रसदार फल खाकर खुश तो हो सकता है लेकिन उसे दूसरों को बता नहीं सकता। दूर से दिया गया आश्वासन भी कुछ इसी तरह का है और जब कहीं पर निगाहें.कहीं पर निशाना वाली बात हो तो इन आश्वासनों की अहमियत और भी बढ़ जाती है। आश्वासन देना है तो लाठी भी खानी पड़ेगीए गिरना भी पड़ेगा। हरामखोर और नॉटी का अंतर न समझने वाले शिवसेना नेता संजय राउत ने बजां फरमाया है कि राहुल गांधी इंदिरा गांधी के पोते और राजीव गांधी के बेटे हैं। दोनों ने देश हित में अपना सर्वोच्च बलिदान किया है। इसलिए उनके निरादर कीए उनका गिरेबान पकड़ने की किसी को भी इजाजत नहीं दी जा सकती। किसी सांसद को पीड़िता के घर जाने से रोकना तो लोकतंत्र से बलात्कार है। मुंबई में किसी को ऐसा करने की इजाजत वे देते हैं क्याघ् कभी दिया है क्याघ् जवाब ना में ही मिलेगा।
सवाल यह है कि दो.तीन रोज पहले ही मुंबई में एक लड़की को अगवा कर उसके साथ तीन लोगों ने बलात्कार किया। कुछ दिन पहले क्वारंटीन सेंटर में एक महिला से बलात्कार हुआ। हालांकि मुंबई में इस तरह के बलात्कार आम तौर पर होते ही रहते हैंए तब प्रियंका वाड्रा को एक बेटी का मां होने का अहसास क्यों नहीं हुआ। तब राहुल गांधी पीड़िता और उसके परिजनों से क्यों नहीं मिले। राजस्थान के बारा में दो बहलों के साथ तीन लोगों ने गैंग रेप किया। अजमेर में एक महिला के साथ दुष्कर्म की घटना हुईए राहुल गांधी वहां क्यों नहीं गए। पूरे देश में बलात्कार की 87 घटनाएं रोज होती हैं। फिर हाथरस ही क्योंघ् जबकि इस मामले में दुष्कर्म प्रमाणित नहीं हुआ है। पश्चिम बंगाल में तो पंचायत चुनाव में बलात्कार को चुनावी हथियार बना लिया गया था। वहां भी बलात्कार की घटनाएं कम नहीं होती।। आईना दिखाने का मतलब यह नहीं कि बलात्कार की आलोचना न हो लेकिन वह स्वस्थ होनी चाहिए और उसमें भेदभाव की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। बलात्कार संसार का सबसे घृणित अपराध है। यह किसी महिला बच्ची और युवती को जीवित मार देने जैसा है जिसका दंश वह जीवन भर झेलती है।
हाल ही में योगी आदित्यनाथ की कैबिनेट ने निर्णय लिया था कि महिलाओं से छेड़छाड़ और दुष्कर्म करने वालों और उनके मददगारों के पोस्टर चौराहों पर लगाए जाएंगे लेकिन सरकार के ऐसा करने से पर्व ही विपक्ष ने लखनऊ और आजमगढ़ में भाजपा के उन नेताओं के पोस्टर चिपका दिए जो या तो जेल में हैं या जमानत पर जेल से बाहर हैं। पुलिस का काम पुलिस को ही करने दिया जाना चाहिए। यही उपयुक्त भी है। पुलिस के काम में हस्तक्षेप कर हम उससे बेहतर कार्य परिणाम की उम्मीद कैसे कर सकते हैंघ् अच्छा होता कि विपक्ष सरकारए पुलिस और अदालत पर यकीन करता। बलात्कार पर बेवजह की राजनीति ठीक नहीं है। सभ्य समाज और इस देश का संविधान इसकी इजाजत नहीं देता। विपक्ष को देशहित में कुछ रचनात्मक सोचना और करना चाहिए।
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