अमर उजाला में निर्दोष युवक पर गैंगस्टर लगाने के खिलाफ खबर प्रकाशित
कोई इस थानेदार हरेराम मौर्या और इसे संरक्षण देने वाले पुलिस कप्तान डा. मनोज कुमार से पूछे कि क्या गैंगस्टर किसी एक हत्याकांड में किसी का नाम आ जाने पर उस पर लगा दिया जाता है? क्या गैंगस्टर जैसा गंभीर कानून न्यायालय में विचाराधीन हत्या के मुकदमें के किसी ऐसे आरोपी पर लगाया जा सकता है जिसका कभी कोई आपराधिक अतीत न रहा हो और जिसे हत्याकांड में इसलिए नामजद किया गया क्योंकि वह प्रधान पद का प्रत्याशी था और रंजिश में दूसरी पार्टी ने मुख्य हत्यारों के साथ उसका भी नाम जुड़वा दिया. कायदे से तो पहली गलती पुलिस ने यही की कि एक ऐसे व्यक्ति का नाम एफआईआर में रखा जो हत्याकांड में दूर दूर तक शामिल नहीं था.
हत्या के आरोप में फंसाए जाने से मानसिक तौर पर परेशान युवक पर गैंगस्टर जैसा तमगा लाद देने से क्या इस व्यक्ति का निजी और सामाजिक जीवन छिन्न-भिन्न नहीं हो जाएगा? क्या थानेदार और पुलिस कप्तान भावनाशून्य होकर रोबोट की तरह काम करने लगे हैं जिसके तहत किसी हत्याकांड में फंसे सभी आरोपियों पर आंख मूंदकर एक साथ गैंगस्टर लगा दिया जाता है या वे जमीनी स्तर पर जांच करके आरोपियों के बीच विभेद करेंगे कि किसका आपराधिक अतीत रहा है और किसके जेल में न होने से समाज व देश के लिए खतरा पैदा हो सकता है?
जो कानून बड़े अपराधियों, माफियाओं, स्मगलरों आदि को जेल में बंद करने के लिए बना उसका पतन इस कदर इन अफसरों ने कर दिया कि इसे वे उन निर्दोषों पर लगाने लगे जो किसी वजह से किसी केस में फंस गए हैं और पुलिस को पैसा नहीं खिला पा रहे हैं. लीजिए, अमर उजाला में प्रकाशित खबर को पढ़िए और आपको अगर थोड़ा भी यह एहसास होता हो कि रविकांत सिंह के साथ गलत हुआ है, ऐसा किसी के साथ नहीं होना चाहिए तो आप इस पोस्ट को फेसबुक, ट्विटर आदि जगहों पर शेयर करें और अपने मेल बाक्स के सभी कांटेक्ट्स को मेल करें ताकि अपराधियों सरीखा व्यवहार करने वाले पुलिस अफसरों का चेहरा समाज और देश में बेनकाब हो सके. -एडिटर, भड़ास4मीडिया
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