एडीजी के पद पर हैं और खुलेआम झूठ बोलते हैं
इनमे से पहले मामले में मैंने जन सूचना अधिकारी, पुलिस महानिदेशक कार्यालय, उत्तर प्रदेश से कुछ सूचनाएं दिये जाने का अनुरोध किया था और उनके स्तर पर कोई सूचना नहीं मिलने की दशा में प्रथम अपीलीय अधिकारी को अपील किया था. इस सम्बन्ध में किरण यादव, जन सूचना अधिकारी, पुलिस महानिदेशक कार्यालय के पत्र द्वारा मुझे यह यह अवगत कराया गया था कि मैं दिनांक 15/10/2011 को 12 बजे प्रथम अपीलीय अधिकारी (एडीजी, ला ऑर्डर) के सामने अपना पक्ष प्रस्तुत करूँ.
चूँकि मैं स्वयं इस सुनवाई में उपस्थित नहीं हो पा रही थी अतः मैंने पत्र संख्या- IRDS/Enq/DGUP दिनांक 12/10/2011 के साथ सुबेश कुमार सिंह, प्रथम अपीलीय अधिकारी/एडीजी के सामने अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए अपने एक आदमी सरोज ठाकुर को भेजा. सरोज ठाकुर समय से डीजीपी कार्यालय पहुंचे और वहाँ उन्हें जन सूचना अधिकारी किरण यादव के पास ले जाया गया. किरण यादव ने उन्हें बताया था कि सुबेश कुमार सिंह एक मीटिंग में हैं, अतः वे उनके आने का इन्तेज़ार करें.
सरोज ठाकुर किरण यादव के निर्देशानुसार एडीजी के मीटिंग से लौट आने की प्रतीक्षा में लगभग ढाई-तीन घंटे तक डीजीपी कार्यालय के गेट के बगल में बने आगंतुक कक्ष में बैठे रहे. जब करीब तीन बज गया तो अंत में उन्होंने लगभग तीन बजे किरण यादव को ही मेरे द्वारा भेजा गया पत्र दे दिया जिन्होंने उस पत्र को सम्बंधित पत्रावली मे उनके सामने रखते हुए यह कहा था कि वे यह पत्र एडीजी को दे देंगी.
इसके बाद जब काफी समय तक मुझे इस सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं मिली तो मैंने पुनः दिनांक 08/11/2011 को डीजीपी कार्यालय पर एक पत्र रिसीव कराया जिसमे ये सारी बातें मैंने बताई. इसके अगले दिन ही मुझे सुबेश कुमार सिंह, एडीजी का अपील संख्या 41/2011 में अपीलीय निर्णय दिनांक 09/11/2011 प्राप्त हो गया. इस आदेश में सुनवाई की तिथि और समय कहीं अंकित नहीं है लेकिन यह लिखा हुआ है कि “प्रस्तुत अपील के निस्तारण के समय अपीलकर्ता डॉ नूतन ठाकुर उपरोक्त उपस्थित नहीं हैं”.
इस तरह आदेश का यह पहला तथ्य ही पूरी तरह असत्य है. पहली बात कि आदेश में ना तो सुनवाई की तिथि और समय अंकित है, दूसरी बात यह कि एडीजी द्वारा नियत किये गए सुनवाई दिनांक 15/10/2011 समय बारह बजे को वे स्वयं ही अपने कार्यालय में उपस्थित नहीं थे और मेरे द्वारा अपना पक्ष ले कर उपस्थित हुए सरोज कुमार ठाकुर लगभग तीन घंटों तक कार्यालय में उनका इन्तज़ार करके लौटे थे, तीसरी बात यह कि इसके बाद भी सरोज ने मेरा पक्ष किरण यादव को मेरे पत्र के जरिये प्रस्तुत किया था, जिसे किरण ने स्वयं सम्बंधित पत्रावली में रखते हुए उन्हें आश्वस्त किया था कि उसे सुबेश कुमार सिंह के सामने रखा जाएगा.
इस तरह मेरे द्वारा अपनी बात रखे जाने के हर संभव प्रयास के बाद भी अपनी स्वयं की अनुपस्थिति को मेरी अनुपस्थिति बताते हुए एडीजी सुबेश कुमार सिंह ने बुलाये जाने के बाद स्वयं गायब हो कर भी प्रकरण में असत्य तथ्यों पर एकपक्षीय निर्णय किया गया. साथ ही वह निर्णय भी पूरी तरह गलत और एक पक्षीय था क्योंकि उसमे तथ्यों का सम्यक आकलन नहीं करते हुए केवल जन सूचना अधिकारी की बात को ही दुहरा दिया गया और मेरे द्वारा उठायी गयी बिंदुओं पर कोई भी टिप्पणी नहीं की गयी.
दूसरा प्रकरण अपील संख्या 45/2011 (अमिताभ बनाम स०ज०सू०अ० डीजीपी कार्यालय) है जिसमे एडीजी ने अपीलीय आदेश दिनांक 14/11/2011 में एक बार पुनः पूरी तरह असत्य बात अंकित की कि “अपील के निस्तारण के समय अपीलकर्ता श्री अमिताभ ठाकुर, आईपीएस उपस्थित नहीं हैं”. इस मामले में प्रथम अपीलीय अधिकारी ने अपीलकर्ता मेरे पति अमिताभ को दिनांक 10/11/2011 को अपने सामने अपना पक्ष प्रस्तुत करने का आदेश निर्गत किया गया था. मेरे पति को मालूम था कि डीजीपी कार्यालय में प्रथम अपीलीय अधिकारी एडीजी (ला ऑर्डर) हैं जिस पद पर वर्तमान में सुबेश कुमार सिंह तैनात हैं.
दिनांक 10/11/2011 को राजकीय अवकाश था अतः उन्होंने आवास से मेरे सामने ही एडीजी के कार्यक्रम की पुष्टि के लिए अपने मोबाइल संख्या 94155-34526 से उनके शासकीय मोबाइल संख्या 94544-00112 पर 11:18 बजे फोन किया. उनके द्वारा एडीजी का कार्यक्रम पूछे जाने पर उन्होंने यह कहा था कि वे सुनवाई में उपस्थित रहेंगे लेकिन यह उचित होगा यदि मेरे पति उनसे एक बार पुनः करीब 12 बजे पूछ लें.
अमिताभ ने 12:03 बजे दुबारा एडीजी को अपने उसी फोन से उनके उसी शासकीय मोबाइल पर फोन किया तो उन्होंने बताया कि वे उस समय डी डी मिश्रा, आईपीएस, जो कुछ दिनों पहले शासन के खिलाफ गंभीर आरोप लगाने के कारण चर्चा में आये हैं, के पुलिस अफसर कालोनी, गोमती नगर स्थित आवास पर हैं. फिर एडीजी ने स्वयं मेरे पति से कहा कि अब उन्हें इसी काम के लिए वहाँ से दफ्तर जाना पड़ेगा जिससे बेहतर होगा कि इस सुनवाई के लिए वे अगले दिन दिनांक 11/11/2011 को करीब 11 बजे आयें.
अगले दिन दिनांक 11/11/2011 को अमिताभ ने अपने स्थान पर सरोज कुमार ठाकुर को इस सुनवाई हेतु सुबेश कुमार सिंह के समक्ष उपस्थित होने के लिए भेजा था जो निर्धारित समय पर उनके कार्यालय पहुँच गए थे. सरोज ठाकुर के वहाँ जाने के कुछ ही देर बाद एडीजी एक मीटिंग (जो संभवतः डीजीपी, उत्तर प्रदेश की थी) में भाग लेने के लिए अपने कक्ष से निकले थे. दरवाजे पर सरोज ठाकुर ने उनको नमस्कार भी किया था पर वे जल्दी में थे और आगे बढ़ गए थे.
सरोज ठाकुर वहाँ लगभग डेढ़ बजे तक थे और लगभग उसी समय उन्होंने मेरे पति को फोन कर बताया कि एडीजी साहब मीटिंग में हैं, लगता है देर लगेगी. मेरे पति ने उन्हें कहा था कि उनके द्वारा भेजा गया पत्र एडीजी के गोपनीय सहायक को दे दिया जाए. सरोज ने उक्त पत्र, जिसमे वे तथ्य अंकित किये थे, जिनके आधार पर शेष सूचनाएं दी जानी चाहिए थी, एडीजी के गोपनीय सहायक को दे दिया जिन्होंने उन्हें यह आश्वत किया कि वे यह पत्र उनके सामने रख देंगे.
इसके बाद भी सुबेश कुमार सिंह ने अपने अपीलीय निर्णय दिनांक 14/11/2011, जिसमे पुनः सुनवाई की तिथि और समय तो अंकित नहीं है, में लिख दिया- “अपीलकर्ता श्री अमिताभ ठाकुर, आईपीएस उपस्थित नहीं हैं”. इस तरह लगातार सुनवाई हेतु एडीजी से व्यक्तिगत संपर्क रखने, अपना पक्ष रखने हेतु सरोज को भेजने और एडीजी के अनुपस्थित होने की दशा में सरोज के माध्यम से अपना लिखित पक्ष उनके गोपनीय सहायक को देने के बाद भी सुबेश कुमार सिंह ने अपने आदेश में यह अंकित कर दिया कि अपीलकर्ता अपील के निस्तारण के समय उपस्थित नहीं था, जबकि यह बात पूरी तरह इसीलिए असत्य है क्योंकि एक तो दिनांक 10/11/2011 को कोई अपीलीय सुनवाई ही नहीं हुई और दूसरे दिनांक 11/11/2011 को भी एडीजी ने कोई सुनवाई नहीं की. इसके विपरीत दिनांक 11/11/2011 को एडीजी को लिखित रूप में भी अमिताभ का पक्ष मिला था. साथ ही अपने उक्त निर्णय में भी सुबेश कुमार सिंह ने तथ्यों को पूरी तरह दरकिनार करते हुए मात्र जन सूचना अधिकारी की बात को ही पूरी तरह दुहरा दिया.
इन सभी तथ्यों के आधार पर मैंने मुख्य सूचना आयुक्त, राज्य सूचना आयोय, उत्तर प्रदेश को पत्र लिख कर शिकायत की है कि इन दोनों प्रकरणों में मेरे पत्र को धारा 18 की उपधारा 1(b), (e) एवं (f) के अंतर्गत एक शिकायती प्रार्थना पत्र मानते हुए सुबेश कुमार सिंह, प्रथम अपीलीय अधिकारी/ अपर पुलिस महानिदेशक (क़ानून एवं व्यवस्था), उत्तर प्रदेश, कार्यालय पुलिस महानिदेशक, उत्तर प्रदेश के खिलाफ नियमानुसार जाँच कर आवश्यक कार्यवाही करें. यह तो हाल है उत्तर प्रदेश में एडीजी रैंक के अधिकारी के सच और झूठ का. सचमुच भगवान ही मालिक है इस प्रदेश का.
डॉ. नूतन ठाकुर
पारदर्शिता के क्षेत्र में कार्यरत संस्था नेशनल आरटीआई फोरम की कन्वेनर
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