बचपन में मां ने हमें बड़े प्यार से पाला था । निशा श्रीवास्तव
बचपन में मां ने हमें बड़े प्यार से पाला था ।
हर बुरी नजरों से बचा के हमें छुपाया था।
नजर ना लगे कहीं ध्यान इसका भी रखा था.।
उनसे बचाने हेतु एक काला टीका भी लगाया था।
पर यही सोचा मैंने यह तो माँ का ख्याल है।
अपने बच्चों की सलामती के लिए माँ बदहाल है।
सोचा मैंने इस नजाकत की दुनिया से कहीं दूर चले हम।
अपनी ही एक ऐसी नई दुनिया बनाएं हम।
इन पुराने ख्यालात में आखिर कब तक जिए हम।
अपनी ही जिंदगी से कहीं उब गए थे हम।
ना प्रकृति का ख्याल ना भगवान का डर।
नए जमाने का मुझ पर कुछ हुआ ऐसा असर।
भूल गए उस बात को भी कि भगवान की लाठी बेआवाज है।
प्रदूषण से बनी इस दुनिया का यह नया अंदाज है।
पर प्रकृति नहीं भूली अपनी अस्तित्व को
कब तक वह बर्दाश्त करें इस लम्हात को
मूकभाव में समझाती रही खुद में उलझी रही
करो ना ऐसे काम कि हमें भी कुछ करना पड़े
तुम्हारा ही किया हुआ कर्म एक दिन तुम्हें भरना पड़े।
निशा श्रीवास्तव
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