भारत-चीन विवाद का केंद्र गलवान घाटी
अंतिम प्रवक्ता, 17 जून, 2020। पिछले 42 दिन से लदाख के गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच सैन्य तनाव बना हुआ है। गलवान घाटी पर चीन ने विवाद पैदा किया और अपना फौजी जमावड़ा बढ़ाया तो भारत ने भी अपने जवानों की संख्या बढ़ा दी।
लद्दाख स्थित वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों की सेनाएं एक दूसरे के आमने सामने हैं। सोमवार 15 जून की रात दोनों देशों की सेनाओं के बीच हिंसक झड़प में भारत के 20 जवान शहीद हो गए हैं। लद्दाख के पास स्थित गलवान घाटी विवादित क्षेत्र अक्साई चीन में है। वास्तविक नियंत्रण रेखा अक्साई चीन को भारत से अलग करती है। गलवान क्षेत्र लदाख के चुसूल काउंसिल के अंतर्गत आता है। गलवान घाटी लद्दाख और अक्साई चीन के बीच स्थित है जहां से भारत-चीन सीमा काफी करीब है।
गलवान घाटी क्षेत्र का इतिहास बेहद दर्दनाक है। लदाख में एलएसी पर स्थित गलवान इलाके को चीन ने अपने कब्जे में ले रखा है। चीन के अतिक्रमण को रोकने के लिए भारतीय जवान गलवान नदी में भी नाव के जरिए नियमित गश्त करते हैं। गलवान घाटी भारत की तरफ लदाख से लेकर चीन के दक्षिणी शिनजियांग तक फैली है। यह क्षेत्र भारत के लिए सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि यह पाकिस्तान और चीन के शिनजियांग दोनों के साथ लगा हुआ है।
गलवान नदी का नाम गुलाम रसूल गलवान के नाम पर पड़ा था। वह लेह के रहने वाले ट्रेकिंग गाइड थे। साल 1900 के आसपास उन्होंने गलवान नदी को खोजा था। गलवान नदी काराकोरम रेंज के पूर्वी छोर में समांगलिंग से निकलती है, फिर पश्चिम में जाकर श्योक नदी में मिल जाती है।
गलवान नदी पर भारत की ओर से पुल बनाया जा रहा है। मौजूदा तनाव के हालात को देखते हुए भारत ने पुल का निर्माण कार्य तेज कर दिया है, इसके लिए बीआरओ ने बड़ी संख्या में मजदूर लगाये हैं। गलवान घाटी में भारत सड़क बना रहा है, जिसे रोकने के लिए चीन कई बार सीमा पर तनाव फैलाने वाली हरकत करता रहता है। दरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी रोड (डीबीओ) भारत को इस पूरे इलाके में बड़ा लाभ दे सकती है।
यह रोड काराकोरम पास के नजदीक तैनात जवानों तक सामान एवं गोला-बारूद आदि की आपूर्ति के लिए बेहद अहम है। डीबीओ सेक्टर अक्साइ-चिन पठार पर भारतीय मौजूदगी की नुमाइंदगी का प्रतीक है। गलवान नदी के मामले में उच्चतम रिजलाइन अपेक्षाकृत नदी के पास से गुजरती है जो चीन को श्योक रूट के दर्रों पर चीन को हावी होने देती है। इसके अलावा, अगर चीन गलवान नदी घाटी के पूरे हिस्से को नियंत्रित नहीं करता तो भारत नदी घाटी का इस्तेमाल अक्साई चिन पठार पर उभरने के लिए कर सकता था और इससे वहां चीनी पोजीशन के लिए खतरा पैदा होता।
चीन गलवान घाटी में भारत के निर्माण को गैर-कानूनी कह रहा है, क्योंकि भारत-चीन के बीच हुए समझौते के हिसाब से एलएसी को मानने और नये निर्माण नहीं करने की बात की गयी है। चीन वहां पहले ही जरूरी सैन्य निर्माण कर चुका है और अब वह मौजूदा स्थिति बनाये रखने की बात कर रहा है। अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए अब भारत भी वहां पर सामरिक निर्माण करना चाहता है। गलवान घाटी के आस-पास के क्षेत्र में चीन ने कई चौकियों का निर्माण भी कर लिया है। यहां से कुछ दूरी पर चीन का एक बड़ा बेस भी है।
साल 1962 में भारत-चीन के बीच हुए भयानक युद्ध की नींव गलवान इलाका ही माना जाता है। तब गलवान के आर्मी पोस्ट में 33 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे और कई दर्जनों को बंदी बना लिया गया था। इसके बाद से चीन ने अक्साई-चिन पर अपने दावे वाले पूरे क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। यहीं से भारत-चीन के बीच युद्ध की शुरुआत हुई।
साल 1962 युद्ध के एलान से चंद महीने पहले भी गलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाएं जुलाई में आमने-सामने आ गयी थीं। तब भारत के गोरखा सैनिकों ने घाटी के रास्ते में एक पोस्ट बनायी थी। इस पोस्ट से एक चीनी पोस्ट का रास्ता कट गया था। इसे चीन ने अपने ऊपर हमला बताया था। इसके बाद चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों की घेराबंदी कर दी। इसके बाद भारत ने चार माह तक इस पोस्ट पर हेलीकॉप्टर के जरिये खाद्य और सैन्य आपूर्ति की थी।
Leave a reply
You must be logged in to post a comment.