तमिलनाडु में नए कानून के साथ वैध हुआ जल्लीकट्टू
तमिलनाडु विधानसभा ने 23 जनवरी को प्रदेश के लोकप्रिय पारंपरिक खेल जल्लीकट्टू को वैधता प्रदान करने वाले विधेयक को पारित कर दिया। यह विधेयक अध्यादेश की जगह लेगा।
यह कानून उस अध्यादेश की जगह लेगा, जिसे पशु क्रूरता निवारक अधिनियम में संशोधन के लिए लाया गया था। कोई अध्यादेश छह महीनों के लिए ही वैध होता है, जिसके बाद अगर इससे संबंधित कानून पारित न हो, तो इसकी वैधता स्वतः समाप्त हो जाती है।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ओ.पन्नीरसेल्वम ने विधेयक को विधानसभा में पेश किया, जिसके बाद इसे तत्काल पारित कर दिया गया। यह कानून जल्लीकट्टू को कानूनी चुनौतियों से संरक्षण प्रदान करता है। इससे पहले, दिन में राज्यपाल सी.एच.विद्यासागर राव ने विधानसभा से कहा कि जल्लीकट्टू के आयोजन को लेकर जारी अध्यादेश की जगह लेने वाले कानून को सदन में तुरंत पेश किया जाए।
विधेयक के पारित होने का जल्लीकट्टू समर्थकों ने स्वागत किया है। जल्लीकट्टू पेरावई के अध्यक्ष पी.राजाशेखर ने संवाददाताओं से कहा कि वह इस कानून का स्वागत करते हैं। एक तरफ विधेयक को जब चर्चा के लिए सदन में पेश जा रहा था, तो दूसरी तरफ पूर्व न्यायाधीश हरि पारंधमान मरीना समुद्र तट पर जल्लीकट्टू को लेकर प्रदर्शन कर रहे लोगों को इस कानून के पहलुओं से विस्तार से अवगत करा रहे थे।
उन्होंने प्रदर्शनकारियों को आश्वस्त किया कि यह कानून जल्लीकट्टू के संरक्षण की दिशा में स्थायी समाधान है। यह कानून न सिर्फ खेल को सुनिश्चित करता है, बल्कि सांडों की सुरक्षा तथा किस तरह से खेल होना चाहिए, इसके उपाय भी सुझाता है।
इस बीच, प्रदर्शनकारियों ने इस मुद्दे के स्थायी समाधान की मांग की है। उन्होंने केंद्र सरकार से पशु क्रूरता निवारक अधिनियम से परफॉर्मिग एनिमल्स की सूची से सांड को बाहर निकालने की मांग की। इस खेल पर सर्वोच्च न्यायालय ने मई 2014 में प्रतिबंध लगा दिया था।
जल्लीकट्टू पर मार्कंडेय काटजू का बयान- जानवर कोई इंसान नहीं होते
तमिलनाडु में जल्लीकट्टू को प्रतिबंधित करने के उच्चतम न्यायालय के फैसले को बदलवाने के लिए तमिलनाडु सरकार एक अध्यादेश लेकर आई। मामले के स्थायी समाधान के लिए राज्य में कई जगहों पर जारी प्रदर्शनों के मद्देनजर विधानसभा में मौजूदा कानून में बदलाव कर पशु क्रूरता निवारण (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम, 2017 प्रस्ताव पारित किया गया। पशु कल्याण के लिए काम कर रहे कार्यकर्ताओं की एक अपील के बाद सुप्रीम कोर्ट ने साल 2014 में जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगा दिया था। कार्यकर्ताओं का कहना था कि जल्लीकट्टू खेल के दौरान बैलों के साथ क्रूरता की जाती है।
नया कानून बनाकर जल्लीकट्टू को जारी रखना क्या जानवरों के साथ क्रूरता नहीं है? इस सवाल के जवाब पर उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू कहते हैं कि भारत बड़ी विभिन्नताओं का देश है, अगर हमें इसे एकजुट रखना है तो भारत के सभी भागों की परपंराओं और भावनाओं का ख्याल रखना होगा। जल्लीकट्टू तमिलनाडु का एक परंपरागत खेल है जो सैंकड़ों सालों से चला आ रहा है। अगर इस खेल में कुछ क्रूरता होती है जैसे जानवर के आंख में मिर्ची रगडना, दुम काट देना या शराब पिलाना, तो इसे प्रतिबंधित कर देना चाहिए। वरना यह एक खेल है, इसमें क्या हर्ज है।
काटजू ने कहा कि जहां तक क्रूरता की बात है अगर आप मछली पकड़ते हैं तो उसमें भी क्रूरता है। काटजू ने कहा कि जानवर कोई इंसान तो होता नहीं है। आप जानवर को इंसान के बराबर नहीं मान सकते। हालांकि एक सवाल ये भी उठता है कि जल्लीकट्टू को प्रतिबंधित करने का फैसला उच्चतम न्यायालय ने काफी विचार विमर्श के बाद किसी आधार पर किया होगा। इस सवाल के जवाब में पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू कहते हैं कि सरकार उच्चतम न्यायालय के फैसले को नहीं बदल रही है। सरकार कानून को बदल रही है जो हमेशा बदला जा सकता है।